अधूरी कहानी

  • Writer: Vishal Narayan
  • |
  • 19 Oct 2021
  • |
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अधूरी कहानी



शिकायतें बार बार करने पर भी जब कोई नही सुनता तब तकलीफ होती है। गैर जरुरी बात नही होती है किसी की उम्मीद टूटने की कहानी। उसे सुन लेना चाहिये। मगर जब इन बातों को लगातार बोलने पर भी कोई नही सुनता तब मौन हावी हो जाता है। अथाह दर्द के उस समंदर मे गोते लगाती आत्मा दुहाई देती है रहम की।

ज़रा गौर से सोचो तो पता चलेगा की हर मुकम्मल इंसान कहीं ना कहीं से बिखर रहा है। समेट पाता है या नही लेकिन अभिनय जरुर करता है। हंसता है, जोक सुनाता है, जी लेता है जिंदगी एक तरह से।क्या ऐसा तुम्हारे साथ भी होता है?

मन झुंझला जाता है। क्युं नही एक बार पूरी किताब हाँथ लग जाती। अपनी जिंदगी पूरी पता कर पाते लोग एक्मुश्त। यूं तो किश्तों मे पूरी कहानी सोच लेते हैं सोचने वाले मगर कहाँ पता चल पाता है सब कुछ।

वो मुलाकात जिसके सपने बुन रखे हैं पूरी होगी या नही?

क्या हम हासिल कर सकेंगे सुकून और मुकाम एक साथ?

ये जो शोर शराबा है फालतु का वो कभी थमेगा क्या?

दर बदर भटकती हैं असंख्य कहानियां उम्मीद के किनारों पर इसी तरह मौन, अपने अस्तित्व के इंतजार मे।

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शाम के पांच बज चुके हैं



अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभाकर सब लौट रहे हैं। मेट्रो खचाखच भरी है। तिनके भर की जगह नही बची है। सबकी नजरें स्मार्ट फोन के स्क्रीन पर ही है। कान मे हेडफोन और चेहरे पर बदलते भाव। कभी हंसते तो कभी बस मुस्कुरा भर देते। कोई बस खड़ा भर है नजरें झुकाये अपनी जिम्मेदारियों की सिसकियां भर सुन पा रहा है वो।
किसी का दिन अच्छा था तो कोई बॉस की खरी खोटी सुन कर आ रहा है इस बात से बिल्कुल अनजान की मिस्टर बॉस के भी सुप्रीम बॉस हैं। लाखों बोझ उठाती है ये मेट्रो दिन भर में मगर ये शाम वाले सारे सुस्त थके से लोग उसे पसंद आते होंगे क्या?
अपनी जंग नाईन टू फ़ाईव लड़ने वाले ये सिपाही दिन में कुछ और होते हैं और शाम को कुछ और। हार जीत अलग बात है मगर जिंदादिली का लाजमी सवाल तो है ही। कभी चाय मे इनकी जिंदगी बसती थी मगर अब कॉफी के प्यालों मे घुट रही है। कोल्ड कॉफी, हाट कॉफी और तरह तरह की वेराईटी। अपने आप की वेराईटी का क्या? कभी सोचा है ?
चलो कोई बात नही। संडे को अक्सर अपनी वही जिंदादिली याद आती है इन्हे। कॉफी नही चाय वाली।
ज़िन्दगी इतना दौड़ा देती है कि ये सुस्त पड़ जाते हैं इतने सुस्त कि दोस्त माँ बाप दोस्त यार प्यार सबकी कसक होते हुए भी दरकिनार कर अपनी भावनाए अपने सोसाइटी की सातवीं मंजिल के सो कॉल्ड आलिशान फ्लैट की खिडकियों पर देख “क्या खोया क्या पाया” की गुत्थियाँ सुलझाते हैं |
सिगरेट के कश में अब इनका मन नहीं लगता धुंआ आस पास से बराबर मिलता जो रहता है। रोजाना घर से घर कॉल आ ही जाती है कैसे हो तुम? बढ़िया….आप सब कैसे हैं? बहुत बढ़िया है सब यहाँ…बस तुझसे एक शिकायत है तू शादी के बारे कुछ क्यों नहीं सोचता
हम्म्म्म सोचता हूँ की औपचरिकता निभाते हुए फ़ोन रख देने का धर्म इनसे स्वंय पूर्ण हो जाता है| दोस्तों के आनलाईन स्टेटस से उनकी निज़ी ज़िंदगी की तरक्की देख मुस्कुराते हैं कभी कभार उसकी न्यूजफीड भी छान आया करते हैं जिससे कभी कुछ कह नहीं पाए थे|
मलाल इतने रह गए हैं जिंदगी में कि दुनियादारी के वेल सेटल्ड लाइफ के मुकाम की परिभाषा बदल सी गई है।
क्या जिंदगी ने सच में मौके नहीं दिए थे इन्हें?
क्या उस आलीशान फ्लैट की खिड़कियों पर अकेले ही खड़ा होना था इन्हें?
क्या जो दोस्त सिर्फ चाय पीने दस किलोमीटर दूर तक आ जाया करते थे वो अब कुछ सौ किलोमीटर्स की दूरी नहीं तय करेंगे?
क्या इन्हें उसे एक बार भी बताने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी?
कितने सारे सवाल है उन सवालों के जवाब में कुछ और सवाल हाजिर जवाब हुए बैठे हैं।
कब तक पता नहीं! वैसे शाम के पांच बज चुके हैं।

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उम्मीदों वाली बात



शिकायतें बार बार करने पर भी जब कोई नही सुनता तब तकलीफ होती है। गैर जरुरी बात नही होती है किसी की उम्मीद टूटने की कहानी। उसे सुन लेना चाहिये। मगर जब इन बातों को लगातार बोलने पर भी कोई नही सुनता तब मौन हावी हो जाता है। अथाह दर्द के उस समंदर मे गोते लगाती आत्मा दुहाई देती है रहम की।
ज़रा गौर से सोचो तो पता चलेगा की हर मुकम्मल इंसान कहीं ना कहीं से बिखर रहा है। समेट पाता है या नही लेकिन अभिनय जरुर करता है। हंसता है, जोक सुनाता है, जी लेता है जिंदगी एक तरह से।क्या ऐसा तुम्हारे साथ भी होता है?
मन झुंझला जाता है। क्युं नही एक बार पूरी किताब हाँथ लग जाती। अपनी जिंदगी पूरी पता कर पाते लोग एक्मुश्त। यूं तो किश्तों मे पूरी कहानी सोच लेते हैं सोचने वाले मगर कहाँ पता चल पाता है सब कुछ।
वो मुलाकात जिसके सपने बुन रखे हैं पूरी होगी या नही?
क्या हम हासिल कर सकेंगे सुकून और मुकाम एक साथ?
ये जो शोर शराबा है फालतु का वो कभी थमेगा क्या?
दर बदर भटकती हैं असंख्य कहानियां उम्मीद के किनारों पर इसी तरह मौन, अपने अस्तित्व के इंतजार मे।

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आधा अधूरा



समुन्दर के किनारे ख्वाबों का एक छोटा-सा घर !
वहां की रेत से बनी ढेर सारी यादों की तस्वीरें , मालूम तो था ही कुछ कमी है उस ठहरे हुए वक्त में , जानबूझ कर अनदेखा करता रहा क्योंकि ज़ोर तो था नहीं !!
लालसा ,जब विवेक के भ्रमित राहों के चक्रव्यूह में गिरता संभलता तो बंजर सा ख्याल ,अजन्मे बच्चे की तरह दस्तक दे जाता ।
अजीब से इस ज़हान की अजीब अजीब सी दस्तूर ।
रिती रिवाज़ के दहलीज पर खड़े ख़ामोश ख्वाहिशों कि कतारें।भीड़ भाड़ से परे उनकी अटकी सांसें ।
तेज दौड़ती-भागती जिंदगी में सच्चाई न बयां कर पाने की तकलीफ़ ।तीव्र भावनाओं पर धारदार औजार का प्रहार । एक रास्ता जो तुमसे होकर मुझ तक पहुंची हमेशा
उस रास्ते पर चलना आज भी मुझे अच्छा लगता
असर तो खूब हुआ था तुम्हारे संग वीरानी शैर की हवाओं में ।नाता जो खत्म हुआ मीठा जहर भाने सा लगा इस जीवन में ।जिन्दगी जीने का मजा ही तब है जब सारी उसे मिटाने पर तुली हो ।तुमसे ही तो सिखा है झूठी मुस्कान बिखेरना पुरी शिद्दत से ,ताकी सबकी निगाहें एक हंसती हुई तस्वीर ही देखें। दर्द सबसे छिप कर किसी कोने में खारे बादलों में तब्दील जाएं ।तुमने मुझे कुछ खुबियों से अवगत कराया जिनसे मैं अंजान ही रह जाता,गर तुम शामिल ना होती मुझमें। मैं तो खुफिया नज़र रखते हुए दिल को निरंतर तुम्हें भूल जाने के प्रयास में रम जाने को कहता हुं।
कहां भटकाती रहती हो मुझे , बेशक मन तुम्हारी चंचल मुस्कुराती हुई छवि से हार गया ।तुमसे मोहब्बत हो गई , जूर्म तो न था कोई किस गुनाह कि सज़ा दे गई ।
जब छोड़ कर जाना पक्का ही था तो इंसान क्यो बनाया, मैं तो जानवर था ही पर मैं खुश था ,बेहद खुश ।
ख़ामोश ज़ुबां तुम्हारे राग अलाप रहे ,सांसों में धड़कन निर्जिव सा पड़ा है ।
समझ से परे किस दिशा जाऊ , मोड़ ये कौन है ,कैसे परखुं कहा रूकूं ,किस मोड़ को अपना साथी समझूं ।
मिटी मिटी सी अश्कों से नैनों की धुली धुली ये पलकें है ।
तुम्हारा जख्मी तोहफा खुब भाता मुझे
मरहम पट्टी से घाव भरने के आसार कुछ खास न दिखे ।
बेइलाज वाला रोग तुमसे मुफ्त जो पा लिया मैंने ,,
कभी फुर्सत मिले तो बताना मुझे क्या अभी भी मेरी याद कहीं खटकती है ।
मैं तो चाह के भी पल भर के लिए भी नहीं भुला तुम्हें , गहराई जो थी उन नजदीकियों में ।
आईने की तरह साफ़ जो दिल था तुम्हारा
जाहिर है इरादे को तो बेईमान ही होना था, सच कहूं तो बहुत याद आती है तुम्हारी।
सच कहूं तो आज भी उस मीठे एहसास का चुभन जिंदा है।कहानी के हर पन्ने पर जिक्र तो तुम्हारा ही है।
क्यो मैं दूर हो कर भी खुद को बेहद करीब पाता तुम्हारे ।
कोई तो वजह होगी जो हम साथ चले बिना मतभेद हमसफ़र बनने की ख्वाहिश दम तोड़ती हुई बेफिक्र हो गई ।अब तुम किसी और की अमानत ,परम्पराओ से बंधी किसी खानदान की शोभा। और मैं वही बेफिक्र जान खैर अब शिकायतें करने में भी दिलचस्पी नहीं लेता मन, जिंदगी ग़ैर सी जान पड़ती है

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